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मंदाक्रान्ता छंद "लक्ष्मी स्तुति"

मंदाक्रान्ता छंद "लक्ष्मी स्तुति"

लक्ष्मी माता, जगत जननी, शुभ्र रूपा शुभांगी।
विष्णो भार्या, कमल नयनी, आप हो कोमलांगी।।
देवी दिव्या, जलधि प्रगटी, द्रव्य ऐश्वर्य दाता।
देवों को भी, कनक धन की, दायिनी आप माता।।

नीलाभा से, युत कमल को, हस्त में धारती हैं।
हाथों में ले, कनक घट को, सृष्टि संवारती हैं।।
चारों हाथी, दिग पति महा, आपको सींचते हैं।
सारे देवा, विनय करते, मात को सेवते हैं।।

दीपों की ये, जगमग जली, ज्योत से पूजता हूँ।
भावों से ये, स्तवन करता, मात मैं धूजता हूँ।।
रंगोली से, घर दर सजा, बाट जोहूँ तिहारी।
आओ माते, शुभ फल प्रदा, नित्य आह्लादकारी।।

आया हूँ मैं, तव शरण में, भक्ति का भाव दे दो।
मेरे सारे, दुख दरिद की, मात प्राचीर भेदो।।
मैं आकांक्षी, चरण-रज का, 'बासु' तेरा पुजारी।
खाली झोली, बस कुछ भरो, चाहता ये भिखारी।।
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मंदाक्रान्ता छंद विधान -

"माभानाता,तगग" रच के, चार छै सात तोड़ें।
'मंदाक्रान्ता', चतुष पद की, छंद यूँ आप जोड़ें।।

"माभानाता, तगग" = मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, गुरु गुरु (कुल 17 वर्ण की वर्णिक छंद।)
222   2,11   111  2,21   221   22  
चार छै सात तोड़ें = चार वर्ण,छ वर्ण और सात वर्ण पर यति।

(संस्कृत का प्रसिद्ध छंद जिसमें मेघदूतम् लिखा गया है।)

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

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5 Comments

Chudhary

07-Jul-2022 12:11 AM

Nice

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Pallavi

05-Jul-2022 03:14 PM

बहुत खूब

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Basudeo Agarwal

06-Jul-2022 05:05 AM

आभार।

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Renu

03-Jul-2022 10:13 PM

👍

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Basudeo Agarwal

06-Jul-2022 05:06 AM

आभार।

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